इंटरव्यू लेने वाले ने बेहद अशालीनता से पूछा – “मेरठ में पीएचडी कितने में मिलती है?”
हाज़िर जवाब डॉ. कुमार विश्वास ने कहा – “आपने जितने मिली है उससे सस्ते में दिला देंगे।”
90 के दशक के शुरुआत का समय था। कुमार विश्वास ने नई-नई PhD की थी। जैसा कि भारत में पढ़ाई का मूल उद्देश्य होता है – सरकारी नौकरी करना। उसी परम्परा के तहत अब उन्हें नौकरी की तलाश थी। उस समय उत्तर प्रदेश की चिरंतन व्याधियों यानी भ्रष्टाचार के चलते आयोग भंग कर दिया गया था। इस कारण से उन्होंने निश्चय किया कि वो राजस्थान में कोशिश करेंगे। इसके लिए उन्होंने उस समय “राजस्थान पत्रिका” के संस्करण को डाक के माध्यम से मंगवाना शुरू किया। इसके बाद विज्ञापन देखकर उन्होंने कॉलेजों में आवेदन भरना शुरू किया।
पहला बुलावा आया राजस्थान की राजधानी गुलाबी शहर जयपुर से और कॉलेज का नाम था भवानी कन्या निकेतन महिला महाविद्यालय, जो कि राज परिवार का कॉलेज था। इसके लिए कुमार विश्वास जयपुर में अपने पिताजी के एक मित्र, जो कि उस समय के बड़े कहानीकार और संपादक थे, उनके घर पर पहुंचे।
उन्होंने पूछा – “कैसे आए, कविराज?
कुमार विश्वास – “जी, कल इंटरव्यू है।”
उन्होंने कहा – “कहाँ? भवानी में?”
कुमार विश्वास – “हाँ।”
उन्होंने कहा – “अरे, तुम गलत आए। वहां तो फलाने की बेटी का होगा। लड़की के पिता प्रोफेसर हैं और मेरे अच्छे दोस्त भी हैं। मैं वहां एक्सपर्ट था, लेकिन मेरे दोस्त की बेटी होने की वजह से मैंने वहां एक महिला को एक्सपर्ट बनवा दिया है। पहले से तय है, वहां तो उसी का होगा।”
काफी दूर से आने के कारण कुमार विश्वास ने सोचा कि अब अगर इतनी दूर आ गए हैं तो नौकरी न सही, इंटरव्यू का अनुभव ही लेते चलें। वो इंटरव्यू देने पहुँचे। सुबह से केवल पोहा खाया था। इंटरव्यू का नंबर काफी देर में आया। तब तक काफी भूख लगी ही हुई थी। फिर भी, उनका नंबर आया और वो इंटरव्यू बोर्ड के सामने पहुँचे।
वहां जो महिला इंटरव्यू ले रही थीं, उन्होंने पूछा – “कौन से विश्वविद्यालय से पीएचडी की है?”
कुमार विश्वास- “जी, मेरठ विश्वविद्यालय से।”
इस पर उनका पहला सवाल था – “पीएचडी कितने में मिलती है वहां?”
बेहद अशालीन सवाल था, उस बच्चे से जो दूसरे प्रदेश से नौकरी मांगने आया है। ये लोग इतने बड़े विश्वविद्यालय के आचार्य थे। बच्चा सुबह से भूखा था। अपनी बारी के इंतजार में था। इस हालत में इस तरह के प्रश्न से कुमार विश्वास को धक्का लगा। लेकिन, कुमार विश्वास के कवि सम्मेलन चल रहे थे। पैसे का उन्हें कोई अभाव नहीं था। नेट कर ही चुके थे। नौकरी की उन्हें कोई जल्दी नहीं थी। इसलिए, महिला के सवाल करने पर उन्होंने उसी अशालीन लहज़े में जवाब भी दे डाला।
उन्होंने पूछा – “पीएचडी कितने में मिलती है मेरठ में?”
कुमार विश्वास – “जी, जितने में आपको मिली है, उससे सस्ते में दिला दूंगा आपको।”
कुमार विश्वास के इस झन्नाटेदार जवाब पर बोर्ड में बैठे कुछ लोग मुस्कुराए। वहीं जिन महिला प्रोफेसर ने ये सवाल पूछा था, उनका चेहरा तमतमा गया।
उन्होंने कहा – “आप साक्षात्कार देने की मुद्रा में नहीं लग रहे हैं।”
इसपर कुमार विश्वास ने फिरसे एक भन्नाटेदार उत्तर दिया – “जी, मैं तो साक्षात्कार देने की मुद्रा में ही आया था, पर पहले प्रश्न से ही लग रहा है कि आप साक्षात्कार लेने की मुद्रा में नहीं हैं।
तभी बोर्ड में बैठे किसी आदमी ने कहा – “जी, विषय पर प्रश्न पूछिए।”
इसके बाद महिला प्रोफेसर ने पूछा – “कवियों में आपका सबसे प्रिय कौन है?”
कुमार विश्वास ने उत्तर दिया – “महाप्राण निराला।”
महिला प्रोफेसर – “निराला की कौन-सी कविता के बारे में आपसे पूछा जाए?”
कुमार विश्वास – “जी, कुछ भी पूछिए।”
महिला प्रोफेसर – “फिर भी कोई विशेष कविता?”
कुमार विश्वास – “जी, आप कुछ भी पूछ लीजिए।”
महिला प्रोफेसर ने कटाक्ष करते हुए कहा – “तो आप सर्वज्ञ हैं?”
कुमार विश्वास ने उसी लहज़े में जवाब दिया – “जी नहीं, सर्वज्ञ लोग तो टेबल के उस तरफ बैठते हैं, इस तरफ तो अल्पज्ञ लोग होते हैं।”
इसपर उन्होंने कहा – “जी, आप जैसी विराट प्रतिभा हमारा कॉलेज सहन नहीं कर पाएगा। आप गलत जगह पर आ गए हैं। कृपया पधारिए।
कुमार विश्वास ने अपनी फ़ाइल उठाते हुए कहा – “जी, ऐसा ही मुझे भी लग रहा है। आपने इतना समय दिया, इसके लिए आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।”
ये कह के डॉ. कुमार विश्वास वहां से निकल लिए। अब आप सोच रहे होंगे इतना बवाल काटने के बाद वो प्रोफेसर बने कैसे? तो भइया, वो मस्त मौला आदमी हैं। पहली बार में बात नहीं बनी तो दूसरी बार पहुँच गए श्रीगंगानगर के पीलीबंगा में। वहां कुछ ढंग के लोगों ने उनका इंटरव्यू लिया और एक ढंग के आदमी को चुन लिया। ये बात है सन् 1993 की। पहली नौकरी में उन्हें उस समय 2200 रूपए वेतन मिलती थी, लेकिन छुट्टी के नाम पर साल में 11 CL (Casual Leave) मिलती थीं, बाकी इससे ज्यादा छुट्टी मारने पर वेतन में कटौती हो जाती थी। इसके चलते कभी कभी उन्हें केवल 600 रूपए तक का वेतन भी लेना पड़ा है। वो बात अलग है कि उससे ज्यादा वो कवि-सम्मेलन में नाम और दाम दोनों कमा लेते थे। आज भी वो देश के सबसे महंगे कवि हैं और बॉलीवुड के कई सितारों से भी ज्यादा टैक्स सालभर में सरकार के खाते में जमा करवाते हैं। शायद इसीलिए हर मुद्दे पर बेबाकी से नेताओं की ऊल-जलूल करतूतों पर उनकी खिंचाइया भी कर लेते हैं।
इसके आगे की कहानी फिर कभी। इसी तरह के रोचक किस्सों के लिए Nachiketa Live से जुड़े रहिए और इन कहानियों को अपने मित्रों और जानकारों से साझा करके हमारा उत्साह भी बढ़ाते रहिए।