वैसे तो नवरात्रि के 9 दिन बहुत ही पावन और पवित्र माने जाते हैं। इन दिनों सच्चे मन से की गई माता दुर्गा की पूजा और प्रार्थना को मां कभी अनसुना नहीं करती, लेकिन अगर आपके दांपत्य जीवन में हमेशा लड़ाई झगड़े और कलह रहता है, इसके साथ ही यदि आपके विवाह में कई अड़चने आ रही है, जिस कारण आप का विवाह नहीं हो पा रहा है या आपके प्रेम संबंध में में कड़वाहट आने लगी है तो आपको नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा अवश्य करनी चाहिए। जैसा कि सभी जानते हैं शैलपुत्री मां दुर्गा का ही एक रूप है।
नवरात्रि के पहले दिन माता के इसी रूप की पूजा की जाती है। माता दुर्गा ने शैलपुत्री रूप में पर्वतों के राजा हिमालय के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था । माता शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है तो बाएं हाथ में कमल का फूल । माता शैलपुत्री की विधि विधान पूर्वक पूजा करने और व्रत रखने से माता भक्तों के जीवन में चली आ रही विवाह या दांपत्य संबंधी सभी तरह की परेशानियों को दूर कर देती हैं। आज हम आपको नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने के महत्व पूजा विधि और कथा के बारे में बताएंगे।
मां शैलपुत्री की पूजा करने का महत्व
जिस तरह माता दुर्गा को जग जननी और जग माता कहा जाता है।उसी तरह मां शैलपुत्री को भी करुणा और ममता की देवी कहते हैं। मां शैलपुत्री को प्रकृति की देवी भी कहा जाता है। शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानी बैल है इसीलिए माता को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री का वास वाराणसी की काशी नगरी में है। जहां उनका एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर माता शैलपुत्री के सिर्फ दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
इसके साथ ही मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन जो भी भक्त माता शैलपुत्री के इस मंदिर में दर्शन करता है। उसके जीवन के सारे विवाह और दांपत्य से संबंधित सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं। सच्चे मन से मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा अर्चना करने से मां दुर्गा का भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
- नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है, इसीलिए इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ सफाई करें और फिर स्थान कर स्नान करें और पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- प्रतिपदा के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करने के बाद माता शैलपुत्री के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- फिर एक चौकी पर कलश की स्थापना के साथ ही माता दुर्गा के की मूर्तियां फोटो की स्थापना करें और माता के शैलपुत्री स्वरूप का स्मरण करें।
- माता के सम्मुख दूध धूप दीप जलाएं । माता को फल और फूल अर्पित करें। ध्यान रखें यदि आप मां शैलपुत्री का स्मरण करते हुए मां को घी अर्पित करेंगे , तो ऐसा करने से आपके विवाह में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इसके साथ ही आपको आरोग्य जीवन का विशेष आशीर्वाद मां से प्राप्त होता है।
- नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री का ध्यान करें और फिर माता की कथा सुनने के बाद माता की आरती गाकर पूजा करें।
- नवरात्रि के पहले दिन शाम के समय दोबारा माता शैलपुत्री का ध्यान करते हुए उनकी आरती गाएं और फिर उन्हें मिश्री,शक्क,र, फल या किसी मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद को बाकी सदस्यों में बाटें।
- फिर माता शैलपुत्री के सम्मुख अपनी मन की मनोकामना रखें। माता से प्रार्थना करें कि वह आपकी मनोकामना को पूर्ण करें और आपके जीवन में आ रही किसी भी तरह के दांपत्य या विवाह संबंधी समस्याओं को दूर करें। ऐसा करने के बाद आप अपना व्रत खोल सकते हैं।
पौराणिक कथा
हिंदू धर्म ग्रंथों में माता शैलपुत्री की उत्पत्ति से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार माता शैलपुत्री ने अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष राज के घर एक कन्या के रूप में जन्म लिया था । जिसका नाम सती रखा गया। राजा अपनी पुत्री सती से बहुत प्रेम करते थे। वैसे तो राजा की अन्य पुत्रियां भी थी लेकिन माता सती प्रजापति दक्ष की प्यारी और लाडली पुत्री थी। बड़े होने पर देवी सती का विवाह भगवान महादेव से कराया गया, हालांकि सती के पिता यानी प्रजापति दक्ष राजस्व विभाग से खुश नहीं थे। लेकिन अपनी पुत्री के प्रेम के लिए उन्होंने सती का विवाह महादेव से स्वीकार कर लिया। लेकिन वह अपनी प्रिय पुत्री के इस निर्णय के कारण उनसे हमेशा नाराज रहते थे।
एक बार दक्षराज ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा। लेकिन अपनी पुत्री और भगवान श्री महादेव को यज्ञ का निमंत्रण नहीं दिया। देवी सती पिता प्रेम के मोह में इस यज्ञ में शामिल होना चाहती थीं, लेकिन भगवान महादेव ने उन्हें यह कहकर जाने से रोकने की कोशिश की, कि प्रजापति दक्ष ने उन्हें आमंत्रित नहीं किया है तो बिना आमंत्रण के उनके इस शुभ कार्य में जाना उचित नहीं है। महादेव के लाख समझाने पर भी माता सती ना मानी और अपने पिता के इस विशाल यज्ञ आयोजन में शामिल होने के लिए चलीं गईं। जहां पर दक्षराज ने भगवान महादेव के बारे में सती को कई अपशब्द कहे।
जिस कारण माता सती क्रोधित हो गई और उन्होंने कहा कि मैं अपने पति परमेश्वर के बारे में कोई अपशब्द या अपमान नहीं सह सकती इसीलिए मैं इस यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग रही हूं। इस तरह माता सती ने अपने पिता के यज्ञ वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जिसके बाद माता दुर्गा ने शैलपुत्री के रूप में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी माता का विवाह भगवान भोलेनाथ से हुआ।