भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्वनी कृष्ण पक्ष अमावस्या तक 16 दिनों का समय श्राद्ध या श्राद्ध पक्ष कहलाता है। वैसे तो इस साल पितृपक्ष 2 सितंबर 2020 से शुरू होंगे, लेकिन श्राद्ध की शुरुआत 3 सितंबर 2020 से होगी जो 17 सितंबर 2020 तक चलेंगे। शास्त्रों के अनुसार अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पितरों को तर्पण दिया जाता है। हिंदू धर्म के मुताबिक जो परिजन अपने देह त्याग देते हैं। उनकी आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विधि विधान पूर्वक तर्पण किया जाता है। जिसे श्राद्ध कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज देव, श्राद्ध पक्ष में कई जीवन को मुक्त कर देते हैं, ताकि वह अपने परिवारजनों के यहां जाकर उनके द्वारा दिया गया तर्पण ग्रहण कर सके।
जिससे उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्राद्ध से सिर्फ पितृ तृप्त नहीं होते, बल्कि समस्त देवों से लेकर वनस्पतियां तक तृप्त हो जाती हैं। श्राद्ध करने वाले व्यक्ति का सांसारिक जीवन सुख और समृद्धि से भर जाता है और अंत में उसे भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी तमाम जानकारियां देंगे। जिसमें हम आपको बताएंगे कि श्राद्ध क्या होता है? पितर कौन होते है और पितृपक्ष कब मनाया जाता है? इसके अलावा यदि आपको श्राद्ध की तिथि याद ना हो तो उसके लिए भी उपाय बताएंगे।
श्राद्ध क्या होता है?
श्राद्ध का अर्थ है कि अपनी कुल देवताओं, पितरों और अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करना। हिंदू पंचांग की बात करें तो 16 दिनों तक कि यह अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसे पितरपक्ष, महालय, श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि साथ ही दिनों में पितृ देव और उनके पूर्वज पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और प्रियजनों द्वारा किए जाने वाले तर्पण को स्वीकारते हैं।
पितृदेव कौन होते हैं?
परिवार के वे सदस्य जिनकी मृत्यु हो चुकी हो, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, बुजुर्ग हो या बच्चा, महिला हो या पुरुष, उन्हें पितर कहते हैं। यदि पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तो घर में ही सुख शांति हमेशा के लिए बनी रहती है। पितरों के आशीर्वाद से सभी बिगड़े काम बनते हैं, लेकिन अगर आप अपने पितरों की अनदेखी करते हैं, तो ऐसे में पितृ रुष्ठ हो जाते हैं। लाख कोशिशों के बावजूद भी आपके काम बिगड़ने लगते हैं। आपके जीवन में कष्ट आने लगते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि पितृदेव रुष्ट हो गए हैं और उनका पितृदोष परिवार पर लग रहा है।
कब होता है पितृपक्ष ?
हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में पितृपक्ष से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को बताया गया है। इनके अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विन मास की अमावस्या तक रहते हैं। अश्विनी महीने की कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है और भद्रपद पूर्णिमा के दिन उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है, जिनका मृत्यु साल की किसी भी पूर्णिमा को होती है। इतना ही कुछ ग्रंथों में भाद्रपद पूर्णिमा के दिन दिवंगत हुए व्यक्ति का तर्पण अश्विनी अमावस्या को करने के लिए कहा जाता है। शास्त्रों में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है, कि साल की किसी भी पक्ष में जिस तिथि को कोई व्यक्ति अपना देह त्यागता है। उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिए।
जब पितरों की श्रद्धा तिथि पता ना हो
यदि आपको अपने पितरों की तिथि का ज्ञान ना हो या किसी भूलवश आप अपने पितरों का तर्पण उनकी पितृ तिथि को करना भूल जाते हैं। इसका पश्चाताप करने के लिए शास्त्रों में एक उपाय बताया गया है। जिसके अनुसार जब किसी व्यक्ति को अपने पितरों या पूर्वजों के पितृ पक्ष की तिथि का ज्ञान नहीं होता। तो ऐसे में अश्विनी अमावस्या को उनका तर्पण किया जा सकता है। तभी तो अश्विनी अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का तर्पण करने का विधान है।
इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो किसी दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो या उसने आत्महत्या कर ली हो तो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही जिस व्यक्ति को अपने माता पिता की पितृ पक्ष तिथि पता हो, वह अपने पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध में नवमी तिथि को कर सकता है या फिर दोनों का श्राद्ध अश्विनी अमावस्या को भी कर सकता है।