दशहरा, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। पूरे भारत में दशहरे का यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । इस पर्व को विजयदशमी भी कहते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार इसी दिन किया था। इसके अलावा दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में जब लंकापति रावण के आतंक से पूरा संसार परेशान और दुखी हो गया था। तब रावण के बढ़ते अत्याचार और अहंकार से सृष्टि को छुटकारा दिलाने के लिए श्री हरि विष्णु ने श्री राम के रूप में इस धरती पर अवतार लिया था।
फिर दशहरे के दिन रावण का वध कर, सृष्टि को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था। तभी से अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में विजयदशमी का यह का त्योहार मनाया जाता है । इस दिन रावण, कुंभकरण मेघनाथ का पुतला बनाकर, उसे फूंका जाता है। जो इस बात का प्रतीक होता है कि अधर्म हमेशा धर्म की ही जीत होगी । भले ही रावण रावण के राक्षसी प्रवृत्ति का रहा हो लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह ज्ञान, कुल और जाति के तौर पर वह एक ब्राह्मण था , इसीलिए उसके पुतले का दहन हिंदू रीति रिवाज से किया जाता है । हर साल अश्विनी मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशहरे का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।
दशहरे की तारीख और शुभ मुहूर्त
इस साल शारदीय नवरात्रे 8 दिन की ही होंगे, क्योंकि अष्टमी और नवमी तिथियों को दुर्गा पूजा एक ही दिन पड़ रही है। 24 अक्टूबर 2020 को सुबह 6:58 तक अष्टमी रहेगी और उसके बाद नवमी लग जाएगी। फिर अगले दिन दशमी का दिन यानी विजय दशमी मनाई जाएगी । इस साल मलमास लगने की वजह से नवरात्रि और दशहरे का यह त्यौहार एक महीने देरी से शुरू हुआ था। हिंदू पंचांग के मुताबिक इस साल दशहरा रविवार 25 अक्टूबर 2020 को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य तुला राशि और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। इतना ही नहीं इस दशहरे के दिन, धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा।
रविवार 25 अक्टूबर 2020 की सुबह 7:41 पर विजय दशमी तिथि का प्रारंभ हो जाएगा। फिर विजय मुहूर्त दोपहर में 1:55 से 2:40 तक रहेगा दोपहर में की जाने वाली पूजा का मुहूर्त 1:11 से 3:24 तक रहेगा और दशमी तिथि की समाप्ति सोमवार 26 अक्टूबर 2020 को सुबह 8:00 बज कर 59 मिनट पर होगी।
दशहरा के दिन पूजा का महत्व
दशहरे के दिन माता दुर्गा और भगवान श्री राम की पूजा अर्चना की जाती है। जहां एक ओर माता दुर्गा, शक्ति का प्रतीक है। वहीं भगवान श्री राम को मर्यादा, आदर्श और धर्म का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं जिस व्यक्ति के जीवन में शक्ति, मर्यादा, आदर्श और धर्म होते हैं, उस व्यक्ति के यह गुण उसे जीवन के हर क्षेत्र में हमेशा सफलता दिलाते हैं। ऐसे व्यक्ति हमेशा उन्नति और तरक्की करते हैं। सामाजिक क्षेत्र में भी इनकी मान प्रतिष्ठा बहुत अधिक होती है । इतना ही नहीं विजय के प्रतीक माने जाने वाले दशहरे के दिन अस्त्र शस्त्र की पूजा करने का भी विधान है। जैसा कि सभी जानते हैं सनातन धर्म में शास्त्र और शस्त्र दोनों का ही अपना एक खास महत्व है। अपने शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए शस्त्रों का प्रयोग किया जाता है।
आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही क्षत्रिय अपने शत्रु पर विजय की पानी की कामना से हमेशा से ही युद्ध के लिए इसी दिन का चुनाव करते हैं। प्राचीन काल में भी अस्त्र शस्त्रों को भगवान का ही एक रूप मानकर उनकी विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना की जाती थी और आज भी शस्त्र पूजन की यह परंपरा कायम है। देश में आज भी बहुत सीरी आए थे और शासक मौजूद है, जो विजयदशमी के दिन अपने शस्त्रों की पूजा अर्चना बड़ी धूमधाम से करते हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसका शुभ फल मिलता है। सच्चे मन से की जय माता की पूजा अर्चना से मां का विशेष आशीर्वाद भी मिलता है।